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असल में ग्रीनवॉशिंग विज्ञापन और सार्वजनिक संदेश का इस्तेमाल करके अपने आप को जलवायु और पर्यावरण के करीब और अच्छा दिखाने का प्रयास करता है, जबकि ऐसा नही है। कैम्ब्रिज डिक्शनरी के अनुसार, ग्रीनवॉशिंग “कंपनी लोगों को यह विश्वास दिला रही है कि वह पर्यावरण की सुरक्षा के लिए बहुत कुछ कर रही है पर ऐसा नही हो रहा है”। ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के मुताबिक ग्रीनवॉशिंग, “कंपनी की ऐसे कार्य जिससे लोगों को यह सोचने पर मजबूर करे की वे पर्यावरण के बारे में चिंतित हैं, भले ही उनका असल व्यवसाय पर्यावरण को नुक्सान पहुँचा रहा हो।”
‘ग्रीनवॉशिंग’ शब्द का स्रोत
पर्यावरणवादी जे वेस्टरवेल्ड ने 1986 के निबंध में फिजी की पूर्व यात्रा के बारे में “ग्रीनवॉशिंग” शब्द लिखा था। यात्रा के दौरान वह एक रिसॉर्ट में गये, जहाँ उन्होंने देखा की रिसॉर्ट के लोग अपने ग्राहकों को उन्ही के तौलिए दुबारा इस्तेमाल करने को कह रहे थे और यह दावा कर रहे थे की इससे पर्यावरण की सुरक्षा होगी। वेस्टरवेल्ड ने इस बात पर ध्यान दिया कि यह असलियत में पैसा बचाने का तरीका है जो पर्यावरण की सुरक्षा के नाम पर एक झूठ है क्योंकि उन्हें पता था कि उस समय रिसॉर्ट तेज़ी से प्रगति कर रहा था वो भी पर्यावरण की बहुत कम चिंता के कारण उन्होंने इसके बारे में लिखने के लिए ‘ग्रीनवॉशिंग’ शब्द का इस्तेमाल किया।
ग्रीनवॉशिंग का पता कैसे लगाएँ?
ग्रीनवॉशिंग का मतलब ग्राहकों को धोखे से यह विश्वास दिलाना कि वे किसी ख़ास उत्पाद से पृथ्वी को हरा-भरा रखने में सहायता कर रहे हैं। दुनिया भर के व्यापार को ग्रीनवॉशिंग में शामिल होने के लिए जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। ग्राहकों को खुद से यह जानना और पहचानना चाहिए की उनके आस-पास के बिकने और विज्ञापित हो रहे उत्पाद ग्रीनवॉशिंग के हैं। ग्रीनवॉशिंग को पहचानने के कुछ तरीके:
‘प्रकृति’ की बहकाने वाली छवि
कंपनियां अक्सर ऐसे चित्रों का इस्तेमाल करती हैं जो “प्रकृति” से जुड़े होते हैं जिससे वह धोखे से साबित कर सकें कि वह पर्यावरण के कितने करीब हैं। कंपनी या उत्पाद द्वारा इस्तेमाल किये गये चित्र के बीच स्पष्ट और उचित कड़ी को समझने की कोशिश करना महत्वपूर्ण है। जब तक की उस कड़ी को स्थापित न किया जाए, चित्र को ग्राहक द्वारा कंपनी या उत्पाद से नहीं जोड़ा जाना चाहिए।
‘ग्रीन’ शब्द के माध्यम से देखें
कंपनियां अपने व्यापार को पर्यावरण के अनुकूल या जलवायु के लिए चिंता जताने के लिए अक्सर ‘चिरस्थायी’, ‘इको’ और ‘हरा’ जैसे ‘ग्रीन’ शब्दों का प्रयोग करती हैं। ग्राहकों को यह पता होना चाहिए कि ये शब्द शायद ही कभी किसी वैज्ञानिक स्तरों से संबंधित हो सकते हैं।
फ़र्ज़ी दावे या अस्पष्ट भाषा
कंपनियां अक्सर अस्पष्ट भाषा का इस्तेमाल करके अपने उत्पादों के बारे में फ़र्ज़ी दावे करती हैं जैसे कोई उत्पाद को ‘प्राकृतिक’, ‘जैविक’ या ‘पर्यावरणीय-अनुकूल’ बताया जाता है, भले ही उसमें इस तरह की बहुत कम सामग्री उपस्थित हों। रिपोर्ट्स के अनुसार, यह वह क्षेत्र है जहां ज्यादातर शिकायतें दर्ज की गयी हैं और बहुत से विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। ग्राहकों को जांच करने के लिए उस उत्पाद की वेबसाइट को जांचना चाहिए कि जो उनके किये हुए दावों के संबंध में उनके पास किसी नियामक संस्था से प्रमाणपत्र प्राप्त है।
जानकारी छिपाना
कंपनियां अक्सर अपने उत्पादों के बारे में जानकारी छिपाती हैं और इस तथ्य को अनदेखा करती हैं, जबकि ग्राहक पूरी सच्चाई के हकदार हैं। एक कंपनी जिसने स्वयं को पर्यावरण के अनुकूल बताया है, लेकिन विदेशी कोयला संचालित फैक्टरी से आपूर्ति श्रृंखला उत्सर्जन के बारे में जानकारी छिपा रही है। इसी प्रकार, एक फैशन ब्रांड अपने कपड़ों को ‘संधारणीय’ जताता है, परंतु असलियत में, सिर्फ एक ही विशेष धागा या उत्पाद वास्तव में ‘संधारणीय’ कपड़ों से बनाया जाता है, जबकि बाकी पर्यावरण के लिए हानिकारक हो सकते हैं।
कार्बन ऑफसेटिंग
कार्बन ऑफसेटिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमे कार्बन को सोखने के लिए अन्य कंपनी को भुगतान किया जाता है ताकि अपने स्वयं के कार्बन उत्सर्जन की आपूर्ति की जा सके। इसलिए जब एक कंपनी यह दावा करती है कि वे कार्बन तटस्थ है, तो यह दावे की व्यावहारिकता से देखना जरूरी है। उदाहरण के लिए प्लास्टिक के बर्तन का एक बड़ा निर्माता वास्तव में एक ही समय में कार्बन तटस्थ नहीं हो सकता है जब तक कि कार्बन ऑफसेटिंग के द्वारा बड़ा निर्माता अपने स्वयं के कार्बन उत्सर्जन की आपूर्ति के लिए एक अन्य कंपनी को कार्बन सोखने के लिए भुगतान कर रहा है।
नकली प्रमाणपत्र
कंपनियां अक्सर नकली प्रमाणपत्रों का उपयोग यह दावा करने के लिए करती हैं कि उनका उत्पाद आवश्यक जरूरतों को पूरा करता है और उसे ‘पर्यावरणीय अनुकूल’ या ‘हरित’ वर्णित करते हैं। ग्राहक आईएसओ जैसे प्रमाण पर विशवास कर सकते हैं, परंतु कुछ लेबल जैसे “100% प्राकृतिक” या “100% हरित” पर भरोसा करना कोई होशियार बात नहीं है। एफएससी और इको-लेबल प्रमुख पर्यावरणीय प्रमाण के कुछ उदाहरण हैं जिन पर विश्वास किया जा सकता है।
ग्रीनवॉशिंग और जलवायु परिवर्तन
इस समय ऐसा प्रतीत होता है कि दुनिया बढ़ते ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को नियंत्रित करने के लिए समय के पीछे एक दौड़ लगा रही है ताकि वैश्विक तापमान को 1.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी के भीतर नियंत्रित किया जा सके, बड़े उद्योगों द्वारा कार्बन उत्सर्जन ग्लोबल वार्मिंग और जलवायु परिवर्तन के विषय में सबसे प्रमुख चिंताओं में से एक बन गया है। पेरिस समझौते से दुनिया के अधिकांश देशों ने ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन पर रोक लगाने और ‘शुद्ध-शून्य उत्सर्जन’ के उद्देश को प्राप्त करने का संकल्प लिया है। प्रमुख निजी निगम भी कतार में जुड़ रहे हैं और जलवायु शपथ जारी कर रहे हैं। जबकि असलियत में अपने व्यापारों को पर्यावरणीय अनुकूल बनाने और जलवायु परिवर्तन से सुलझने के बजाय कई शीर्ष निगम अपनी सार्वजनिक छवि को बेहतर बनाने के लिए ‘ग्रीनवॉशिंग’ में लिप्त हैं।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने गैर-राज्यीय संस्थाओं जैसे व्यवसायों, निवेशकों, शहरों और क्षेत्रों की शुद्ध-शून्य उत्सर्जन प्रतिबद्धताओं पर एक उच्च-स्तरीय विशेषज्ञ समूह (एचएलईजी) की स्थापना की है ताकि शुद्ध-शून्य प्रतिज्ञा का उत्तरदायित्व और विश्वसनीयता सुनिश्चित किया जा सके। संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने कहा कि “हम धीमी गति से चलने वाले, फर्जी या किसी भी तरह की ग्रीनवॉशिंग बर्दाश्त नहीं कर सकते।” मूल्यांकन और जिम्मेदारी के लिए सामान्य मानदंडो की अनुपस्थिति में निजी क्षेत्रों द्वारा शुद्ध-शून्य प्रतिबद्धताओं की पृष्ठभूमि में एचएलईजी की स्थापना हुई थी।
एक पूर्व अध्ययन के अनुसार, जैसा कि “द गार्डियन” की रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया की प्रमुख तेल कंपनियों के जलवायु दावे और कुछ नही सिर्फ ग्रीनवॉशिंग हैं। इस क्षेत्र में आज तक के सबसे व्यापक वैज्ञानिक विश्लेषण के रूप में जाना जाता है। अध्ययन में पाया गया कि तेल प्रमुखों के विषय में शब्द कार्यों से मेल नहीं खाते हैं। इस रिसर्च ने एक्सॉनमोबिल, शेवरॉन, शेल और बीपी के रिकॉर्ड की जांच की। 12 वर्षों से 2020 तक डेटा का विश्लेषण करने के बाद शोधकर्ताओं ने निष्कर्ष निकाला कि इन जीवाश्म ईंधन कंपनियों द्वारा किए गए दावे उनके कार्यों के अनुरूप नहीं हैं।
ईएसजी और ग्रीनवॉशिंग
ईएसजी का अर्थ पर्यावरण, सामाजिक और शासन है और इस शब्द का उपयोग पहली बार संयुक्त राष्ट्र के निमंत्रण पर वित्तीय संस्थानों की एक संयुक्त पहल ‘हू केयर विन्स’ नाम के 2004 की रिपोर्ट में की गयी थी। तब से ईएसजी आंदोलन संयुक्त राष्ट्र द्वारा शुरू किया सीएसआर पहल से एक वैश्विक घटना के रूप में विकसित हुआं। ईएसजी एक संरचना की रणनीति में एकीकृत करने के लिए डिज़ाइन की गई एक रूपरेखा है और एक संगठन का ईएसजी स्कोर पर्यावरण, सामाजिक और शासन (ईएसजी) विषयों की एक विस्तृत श्रृंखला पर अपने प्रदर्शन का एक संख्यात्मक उपाय है।
यह एक ऐसी रणनीति है जो किसी को भी उन कंपनियों में निवेश करने में सहायता करती है जो अपने पर्यावरण, सामाजिक और शासन के तौर-तरीकों के स्वतंत्र उपायों पर अत्याधिक अंक प्राप्त करते हैं और पीढ़ियों तक फैले निवेश विभागों के लिए काफी प्रसिद्ध हो चुके हैं।
लेकिन ग्रीनवॉशिंग ईएसजी के लिए एक बड़ी समस्या बन गई है क्योंकि अध्ययनों से पता चला है कि ज्यादा से ज्यादा ईएसजी फंड उन कंपनियों को शामिल कर रही है जो अपनी सामाजिक और पर्यावरणीय उत्तरदायित्व में निष्ठावान होने से बचते हैं।
एक अर्थशास्त्री अध्ययन के अनुसार, ‘दुनिया के 20 सबसे बड़े ईएसजी फंडों में जीवाश्म ईंधन उत्पादकों में निवेश होता है, जबकि अन्य तेल उत्पादक, कोयला खनन, जुआ, शराब और तंबाकू में हिस्सेदारी रखता हैं।’
ग्रीनवॉशिंग और भारत
वर्तमान में भारत के पास ग्रीनवॉशिंग पर रोक लगाने के लिए कोई विशेष कानून नहीं है। भारतीय विज्ञापन मानक परिषद (एएससीआई) के अनुसार विज्ञापनों के लिए ‘कानूनी, सभ्य, ईमानदार और सत्यवादी’ होना जरूरी है, जो केवल सेल्फ-रेगुलेशन के लिए एक कोड है और ग्रीनवॉशिंग को नियंत्रित करने के मामले में प्रभावी होने से दूर है।
हालांकि बाजार नियामक भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (एसईबीआई) ने हाल ही में जारी परामर्श पत्र में ग्रीनवॉशिंग के जोखिम को कम करने के लिए पर्यावरण, सामाजिक एवं शासन (ईएसजी) नियमों को प्रस्तावित किया है। एसईबीआई के अखबार में बताया गया है कि “प्रतिभूतियों के बाजारों में इस तरह के अनियमित ईएसजी रेटिंग प्रदाताओं पर निर्भरता बढ़ाने से निवेशकों की सुरक्षा, बाजारों की पारदर्शिता और दक्षता, जोखिम मूल्य निर्धारण और पूंजी आवंटन सहित अन्य जोखिमों के बारे में चिंता पैदा हो सकती है।”
उद्योग के विशेषज्ञों ने कहा कि, “ईएसजी थीम के साथ म्यूचुअल फंड योजनाओं के लिए प्रस्तावित प्रकाशन मानकों से निवेशकों को अधिक सूचित निर्णय लेने में सक्षम बनाने के लिए स्पष्टता प्रदान करेंगे।”
इसके साथ ही, मई, 2021 में आरंभ किए गए एक नए सेबी रेगुलेशन के अंतर्गत अब मार्केट कैप साइज़ के हिसाब से शीर्ष 1000 कंपनियों को वित्त वर्ष 2022-23 से अपनी वार्षिक रिपोर्ट में एक अनिवार्य व्यापार जिम्मेदारी और स्थिरता रिपोर्ट (बीआरएसआर) शामिल करने की जरूरत है। इसमें कंपनी के ईएसजी उद्देश्यों का प्रकटीकरण और संचार तथा उनके प्रति कंपनी की प्रगति शामिल है। विशेषज्ञों का मानना है कि इससे ग्रीनवॉशिंग की बढ़ती प्रवृत्ति को रोका जा सकता है।